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सिर्फ़ एक लड़की | शाही शायरी
sirf ek laDki

नज़्म

सिर्फ़ एक लड़की

परवीन शाकिर

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अपने सर्द कमरे में
मैं उदास बैठी हूँ

नीम-वा दरीचों से
नम हवाएँ आती हैं

मेरे जिस्म को छू कर
आग सी लगाती हैं

तेरा नाम ले ले कर
मुझ को गुदगुदाती हैं

काश मेरे पर होते
तेरे पास उड़ आती

काश मैं हवा होती
तुझ को छू के लौट आती

मैं नहीं मगर कुछ भी
संग दिल रिवाजों के

आहनी हिसारों में
उम्र-क़ैद की मुल्ज़िम

सिर्फ़ एक लड़की हूँ!