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सिफ़्र | शाही शायरी
sifr

नज़्म

सिफ़्र

ख़दीजा ख़ान

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उम्र की ढलान पर
थक हार कर

बैठी है ज़िंदगी
हिसाब करती हुई

आख़िर में
अंदर बाहर

बस एक सिफ़्र
ही बचा रह गया