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श्री-कृष्ण | शाही शायरी
shri-krishn

नज़्म

श्री-कृष्ण

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

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हैं जसोधा के लिए ज़ीनत-ए-आग़ोश कहीं
गोपियों के भी तसव्वुर से हैं रू-पोश कहीं

द्वारका-जी का बसाना तो मुबारक लेकिन
कर न दें ब्रिज की गलियों को फ़रामोश कहीं

खा के तंदुल कहीं ए'ज़ाज़ सुदामा को दिया
साग ख़ुश हो के 'बिदुर-जी' का किया नोश कहीं

ख़ुद बचन दे के 'जरा' सिंध से रन में भागे
रहे बद-गोई-ए-शिशुपाल पे ख़ामोश कहीं

द्वारका-धीश कहीं बन के मुकुट सर पे रखा
काली कमली रही जंगल में सर-ए-दोश कहीं

गोपियाँ सुन के मुरलिया हुईं ऐसी बेताब
गिर गए हार कहीं रह गई पा-पोश कहीं

मध-भरे नैन से आँखें न मिलाओ 'कैफ़ी'
लोग मशहूर न कर दें तुम्हें मय-नोश कहीं