ला-मुतनाही ला-मुतनाही
सिलसिले सारे
हम को इन से क्या करना है
हम को फ़क़त इतना करना है
इस सब ला-मुतनाही में से अपना कुछ मुतनाही चुन कर
अपने क़लम की ज़द से अपनी नज़र की हद तक
उस में इक मरकूज़ तसलसुल भर देना है
उस को फिर से ला-मुतनाही कर देना है
नज़्म
शिरकत
अब्दुल अहद साज़