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शिरकत | शाही शायरी
shirkat

नज़्म

शिरकत

अब्दुल अहद साज़

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ला-मुतनाही ला-मुतनाही
सिलसिले सारे

हम को इन से क्या करना है
हम को फ़क़त इतना करना है

इस सब ला-मुतनाही में से अपना कुछ मुतनाही चुन कर
अपने क़लम की ज़द से अपनी नज़र की हद तक

उस में इक मरकूज़ तसलसुल भर देना है
उस को फिर से ला-मुतनाही कर देना है