ख़्वाब शब की मुंडेरों पे बैठे हुए
घूरते हैं मुझे
मेरी आँखों में बसने को बेचैन हैं
मैं इसी ख़ौफ़ से रात भर
जागता हूँ कि मैं सो गया गर
तो ये
मेरी आँखों में बस जाएँगे
और कल
उन की क़ीमत चुकानी पड़ेगी मुझे
नज़्म
शर्नाथी
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
कफ़ील आज़र अमरोहवी
ख़्वाब शब की मुंडेरों पे बैठे हुए
घूरते हैं मुझे
मेरी आँखों में बसने को बेचैन हैं
मैं इसी ख़ौफ़ से रात भर
जागता हूँ कि मैं सो गया गर
तो ये
मेरी आँखों में बस जाएँगे
और कल
उन की क़ीमत चुकानी पड़ेगी मुझे