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शनावर | शाही शायरी
shanawar

नज़्म

शनावर

इमरान शनावर

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ख़ला में ग़ौर से देखूँ
तो इक तस्वीर बनती है

और उस तस्वीर का चेहरा
तिरे चेहरे से मिलता है

वही आँखें वही रंगत
वही हैं ख़ाल-ओ-ख़द सारे

मिरी आँखों से देखे तो
तुझे इस अक्स के चेहरे पे

इक तिल भी दिखाई दे
जो बिल्कुल तेरे चेहरे पर

सजे उस तिल के जैसा है
जो गहरा है बहुत गहरा

समुंदर से भी गहरा है
कि उस गहराई में अक्सर

शनावर डूब जाता है