ज़ीस्त बे-इख़्तियार गुज़री है
जूँ नसीम-ए-बहार गुज़री है
दिल में बरपा क़यामतें करती
निगह-ए-शर्मसार गुज़री है
साग़र ओ साज़ दूर ही रखिए
वर्ना यूँ भी बहार गुज़री है
ज़मज़मा-संज ओ ज़रफ़िशाँ निकहत
फिर सबा पर सवार गुज़री है
क्या गुज़रगाह है मोहब्बत की
ख़ुद-ब-ख़ुद बार बार गुज़री है
इक दुर-ए-शहवार-ए-सद-बुसताँ
फिर लब-ए-जूएबार गुज़री है
हाए शीरीनी-ए-लब-ए-लालीं
मुस्कुराती बहार गुज़री है
वाए तूफ़ान-ए-सीना-ए-सीमीं
दुख़्तर-ए-कोहसार गुज़री है
ज़िंदगी की जमील राहों से
ख़ुद अजल शर्मसार गुज़री है
नज़्म
शम-ए-रह-गुज़र
असरार-उल-हक़ मजाज़