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शख़्सिय्यत की मौसीक़ी | शाही शायरी
shaKHsiyyat ki mausiqi

नज़्म

शख़्सिय्यत की मौसीक़ी

अब्दुल अहद साज़

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वो क़ुबूल-सूरत सी
साँवली भली औरत

थोड़ा रुक के देखें तो
कितनी ख़ूबसूरत है

उस के नर्म लहजे में
उस की सोच की ख़ुशबू

उस के ज़ौक़-ए-पोशिश में
हल्के हल्के रंगों के

इंतिख़ाब का जादू
फ़िक्र की जवाँ किरनें

उस की रूप-रेखाएँ
अँखड़ियों में कुछ ख़ाके

मुज़्तरिब ख़यालों के
उँगलियों में रचनाएँ

नग़मा-ए-तकल्लुम में
ज़ेर-ओ-बम कई ग़लताँ

ज़र्फ़ और ज़राफ़त के
ज़ेर-ए-लब तबस्सुम से

खुल के मुस्कुराने तक
पेच-ओ-ख़म कई लर्ज़ां

इख़तियार-ओ-आदत के
सादगी में चेहरे की

शम्अ इक फ़रोज़ाँ सी
आँच दर्द-मंदी की

लौ किसी बुलंदी की
जुंबिश-ए-रविश उस की

नर्म-गाम ओ आहिस्ता
इक जहान-ए-रानाई

हर निगाह-ए-शाइस्ता
कैफ़ में लताफ़त के

तेज़ हिस्सियत शामिल
तेग़ से ज़ेहानत की

उस की हर अदा क़ातिल
वो क़ुबूल-सूरत सी

साँवली भली औरत
थोड़ा रुक के देखें तो

कितनी ख़ूबसूरत है!