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शायद गुलाब शायद कबूतर | शाही शायरी
shayad gulab shayad kabutar

नज़्म

शायद गुलाब शायद कबूतर

रईस फ़रोग़

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फिर क्या हुआ
फिर यूँ हुआ

कि उस की एक आँख से चमगादड़ ने छलांग लगाई
और एक आँख से फ़ड़फ़ड़ाता हुआ ख़ार-ए-पुश्त निकला

फिर जो वो एक दूसरे पर झपटे हैं
तो ऐसे झपटे

कि मुंडेरें कबूतरों से
और कियारियाँ गुलाबों से

भर गईं
उस दिन के बाद हम ने मदारी को कभी नहीं देखा

अच्छा अब तुम
मेरे लिए पान लगा दो

और अच्छे ख़्वाबों पे ध्यान जमा के
सो जाओ