कुछ क़ौस-ए-क़ुज़ह से रंगत ली कुछ नूर चुराया तारों से
बिजली से तड़प को माँग लिया कुछ कैफ़ उड़ाया बहारों से
फूलों से महक शाख़ों से लचक और मंडवों से ठंडा साया
जंगल की कुँवारी कलियों ने दे डाला अपना सरमाया
बद-मस्त जवानी से छीनी कुछ बे-फ़िक्री कुछ अल्लढ़पन
फिर हुस्न-ए-जुनूँ-पर्वर ने दी आशुफ़्ता-सरी दिल की धड़कन
बिखरी हुई रंगीं किरनों को आँखों से चुन कर लाता हूँ
फ़ितरत के परेशाँ नग़्मों से इक अपना गीत बनाता हूँ
फ़िरदौस-ए-ख़याली में बैठा इक बुत को तराशा करता हूँ
फिर अपने दिल की धड़कन को पत्थर के दिल में भरता हूँ

नज़्म
शाएर
मख़दूम मुहिउद्दीन