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सेल्फ़-पोर्ट्रेट | शाही शायरी
self-portrait

नज़्म

सेल्फ़-पोर्ट्रेट

नियाज़ हैदर

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देखा है किसी ने उसे कहीं
आधे सर में उलझे उलझे उजले बाल

साँवले रंग के चेहरे पर भी
उजले बालों का भौंचाल

उस की सूरत
कभी कभी मल्गजी शाम सी

कभी सहर नूरानी है
अँधियारे उजियाले की ये सूरत फ़न्न-ए-ला-फ़ानी है

पेशानी के आईने पर मर-मिटते लाखों आकाश
दीवानी दीवानी आँखें

और बहुत बे-सब्र निगाहें
दुष्ट-मनों के हर पत्थर में

प्रीत और कोमलता की तलाश
उस के तन पर गर्म कफ़न और ठंडी कफ़नी सजती है

सच्चा रूप है पागल-पन का बेहद अजीब हस्ती है
मस्त अनेक नशों में उस के सब दिन और सब रातें

उस के बहके क़दम करें धरती के दिल से बातें
गली गली में चौराहे पर भीड़ हो या हो तन्हाई

इस दुनिया के होश कर परखे, नशे में उस की बीनाई
देखा है किसी ने उसे कहीं