मेरा वजूद
दीवार-ए-संग-ओ-आहन है
जिसे
रात भर
याजूज और माजूज
अपनी
नोकीली ज़बान से
चाटते रहते हैं
नज़्म
सज़ा
असलम आज़ाद
नज़्म
असलम आज़ाद
मेरा वजूद
दीवार-ए-संग-ओ-आहन है
जिसे
रात भर
याजूज और माजूज
अपनी
नोकीली ज़बान से
चाटते रहते हैं