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सज़ा | शाही शायरी
saza

नज़्म

सज़ा

असलम आज़ाद

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मेरा वजूद
दीवार-ए-संग-ओ-आहन है

जिसे
रात भर

याजूज और माजूज
अपनी

नोकीली ज़बान से
चाटते रहते हैं