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सवाल सवाल सियाह कश्कोल | शाही शायरी
sawal sawal siyah kashkol

नज़्म

सवाल सवाल सियाह कश्कोल

एजाज़ रही

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मुद्दतों से
ख़मोशी के बे-अंत वरनों की अंधी गुफा में

खड़ा वो
मेरी पुतलियों में

सवालों का नेज़ा उतारे हुए पूछता है
मैं तेरी तमन्ना में अपने लिए

दर्द के इक सियह-रू समुंदर से
तन्हाइयों के सियह सीप लाया

सुख के सारे दिए
और

मसर्रत की मालाओं को तोड़ कर
दुख का वर मैं ने माँगा

कि तू मेरी रखशा को आए
मगर मुझ को क्यूँ

इन अज़िय्यत की काली सलीबों पे
ख़ामोशियों की दरिंदा-सिफ़त कील से जड़ दिया है

मुझे किस लिए
फेंका गया है