गुल-दानों में सजे हुए फूलों को मैं ने
रात अपनी आग़ोश में ले कर इतना भींचा
सारे रंग और सारी ख़ुशबू अंग अंग
में बसी हुई है
सारी दुनिया नई हुई है
पर मुझ को इन सब रंगों और ख़ुशबुओं से डर लगता है
जिन का मुक़द्दर तन्हाई हो
या फिर ऐसी रुस्वाई हो जिस की आग में बरस बरस के
सजे हुए मंज़र जल जाएँ
घर जल जाएँ
नज़्म
सौग़ात
इफ़्तिख़ार आरिफ़