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सपना आगे जाता कैसे | शाही शायरी
sapna aage jata kaise

नज़्म

सपना आगे जाता कैसे

मुनीर नियाज़ी

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छोटा सा इक गाँव था जिस में
दिए थे कम और बहुत अँधेरा

बहुत शजर थे थोड़े घर थे
जिन को था दूरी ने घेरा

इतनी बड़ी तन्हाई थी जिस में
जागता रहता था दिल मेरा

बहुत क़दीम फ़िराक़ था जिस में
एक मुक़र्रर हद से आगे

सोच न सकता था दिल मेरा
ऐसी सूरत में फिर दिल को

ध्यान आता किस ख़्वाब में तेरा
राज़ जो हद से बाहर में था

अपना-आप दिखाता कैसे
सपने की भी हद थी आख़िर

सपना आगे जाता कैसे