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सन्नाटा | शाही शायरी
sannaTa

नज़्म

सन्नाटा

मख़दूम मुहिउद्दीन

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कोई धड़कन
न कोई चाप

न संचल
न कोई मौज

न हलचल
न किसी साँस की गर्मी

न बदन
ऐसे सन्नाटे में इक-आध तो पत्ता खड़के

कोई पिघला हुआ मोती
कोई आँसू

कोई दिल
कुछ भी नहीं

कितनी सुनसान है ये राहगुज़र
कोई रुख़्सार तो चमके कोई बिजली तो गिरे