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सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्द | शाही शायरी
sadr-e-jamhuriya-e-hind

नज़्म

सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्द

मसूद अख़्तर जमाल

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सद्र-ए-जमहूरिया-ए-हिन्द
यक़ीनन आप फ़ख़रुद्दीन भी नाज़-ए-उमम भी हैं

अली-अहमद भी हैं आगाह आदाब-ए-हरम भी हैं
वक़ार-ए-होश भी अज़्मत-फरोज़-ए-इल्म-ओ-दानिश भी

गिरामी-क़द्र भी ज़ी-तमकनत भी मोहतरम भी हैं
तब-व-ताब-ए-चमन भी ज़ौक़-ए-तमकीन-ए-बहाराँ भी

जहान-ए-शौक़ का अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम भी हैं
करिश्मा है ख़ुदा का आप के औसाफ़ के क़ाइल

दयार-ए-बरहमन के देवता भी हैं सनम भी हैं
तक़द्दुस मौज-ए-दरिया का लताफ़त आबगीने की

मुजस्सम शौकत-ए-दौराँ सरापा जाम-ए-जम भी हैं
जलाल-ए-बर्क़ भी हैं ज़ालिमों के वास्ते लेकिन

ग़रीबों के लिए सरमाया-ए-लुत्फ़-ओ-करम भी हैं
जो निस्बत आप को 'ग़ालिब' से है उस के तअ'ल्लुक़ से

क़दम-बोसी के ख़्वाहाँ साहिब-ए-सैफ़-ओ-क़लम भी हैं