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सदियों से अजनबी | शाही शायरी
sadiyon se ajnabi

नज़्म

सदियों से अजनबी

अासिफ़ शफ़ी

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उस की क़ुर्बत में बीते सब लम्हे
मेरी यादों का एक सरमाया

ख़ुशबुओं से भरा बदन उस का
क़ाबिल-ए-दीद बाँकपन उस का

शो'ला-अफ़रोज़ हुस्न था उस का
दिलकशी का वो इक नमूना थी

मुझ से जब हम-कलाम होती थी
ख़्वाहिशों के चमन में हर जानिब

चाहतों के गुलाब खिलते थे
उस की क़ुर्बत में ऐसे लगता था

इक परी आसमाँ से उतरी हो
जब कभी मैं ये पूछता उस से

साथ मेरे चलोगी तुम कब तक
मुझ से क़स्में उठा के कहती थी

तू अगर मुझ से दूर हो जाए
एक पल भी न जी सकूँगी मैं

आज वो जब जुदा हुई मुझ से
उस ने तो अलविदा'अ भी न कहा

जैसे सदियों से अजनबी थे हम