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सदा सुहागन | शाही शायरी
sada suhagan

नज़्म

सदा सुहागन

अाज़म ख़ुर्शीद

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अंग भवन का बादल गरजे
क़तरा क़तरा

जीवन बरसे
दीद आँगन में छुड़े उजाला

जिस्म समुंदर फिर से महके
नट-खट नारी साए निगल जा

सा रे गा मा पा धा नी सा
गलियाँ कूचे सोने रस्ते

रौशन होंगे
आँखें सारी उबल पड़ेंगी

पाँव में झाँझर बाँध ले फिर से
सा नी धा पा मा गा रे सा