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सदा-ए-जावेदाँ | शाही शायरी
sada-e-jawedan

नज़्म

सदा-ए-जावेदाँ

साहिर होशियारपुरी

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वाहिमे की सिसकियाँ चारों तरफ़
और उन में इक सदा सब से अलग

जैसे सहरा में गुलाब
तीरगी में जैसे उभरे माहताब

मौत की परछाइयों में जैसे रौशन ज़िंदगानी की लकीर
मुनकिरों के दरमियाँ जैसे मसीह

जैसे बिपता में घिरे इंसान को
अपने मुर्शिद का मिले आशीर्वाद

कौरवों के दल का नर्ग़ा और इस में जैसे कृष्ण
बाँसुरी की मोहने वाली सदा

हल्की हल्की धीमी धीमी कैफ़-ज़ा
ये सदा है अज़्म-ए-इंसाँ का पयाम

अज़्म-ए-इंसाँ की सदा आफ़ाक़ियत
अज़्म-ए-इंसाँ की सदा ला-फ़ानियत

अज़्म-ए-इंसाँ की सदा जम्हूरियत
ये सदा है इक नवा-ए-दिल-सिताँ

ये सदा अफ़्लाक में परचम-फ़शाँ
ये सदा माहौल में हर-दम रवाँ

ये सदा हर दिल की धड़कन से अयाँ
ये सदा है रूह जो है जावेदाँ

जिस्म मरता है सदा मरती नहीं