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सदा ब-सहरा | शाही शायरी
sada ba-sahra

नज़्म

सदा ब-सहरा

मुनीर नियाज़ी

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चारों सम्त अंधेरा घुप है और घटा घनघोर
वो कहती है कौन

मैं कहता हूँ मैं
खोलो ये भारी दरवाज़ा

मुझ को अंदर आने दो
उस के बाद इक लम्बी चुप और तेज़ हवा का शोर