चारों सम्त अंधेरा घुप है और घटा घनघोर
वो कहती है कौन
मैं कहता हूँ मैं
खोलो ये भारी दरवाज़ा
मुझ को अंदर आने दो
उस के बाद इक लम्बी चुप और तेज़ हवा का शोर
नज़्म
सदा ब-सहरा
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मुनीर नियाज़ी
चारों सम्त अंधेरा घुप है और घटा घनघोर
वो कहती है कौन
मैं कहता हूँ मैं
खोलो ये भारी दरवाज़ा
मुझ को अंदर आने दो
उस के बाद इक लम्बी चुप और तेज़ हवा का शोर