मैं भी झूटा तुम भी झूटे
आओ चलो तन्हा हो जाएँ
कौन मरीज़ और कौन मसीहा
इस दुख से छुटकारा पाएँ
आँखें अपनी ख़्वाब भी अपने
अपने ख़्वाब किसे दिखलाएँ
अपनी अपनी रूहों में सब
अपने अपने कोढ़ सजाएँ
अपने अपने कंधों पर सब
अपनी अपनी लाश उठाएँ
बैठ के अपने अपने घर में
अपना अपना जश्न मनाएँ
शायद लम्हा-ए-आइंदा में
लोग हमें सच्चा ठहराएँ
नज़्म
सच्चा झूट
उबैदुल्लाह अलीम