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साल नौ के लिए एक नज़्म | शाही शायरी
sal nau ke liye ek nazm

नज़्म

साल नौ के लिए एक नज़्म

इक़बाल नाज़िर

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दुआएँ और दुआओं से भरी
बे-अंत तहरीरें

मुझे हर साल के इन आख़िरी
लम्हों में मिलती हैं

मेरे अहबाब के नामों में
अक्सर दर्ज होता है

ख़ुदा महफ़ूज़ रक्खे
साल भर मुझ को बलाओं से

मुझे ज़हर अब मैं लिपटी हवाएँ
छू के न गुज़रीं

मुझे मौजूद और आने वाले
साल के लम्हे

मुबारक दर मुबारक हों
यही तहरीर मैं अहबाब को

वापस लुटाता हूँ
यही जज़्बात मेरे दोस्तों

के नाम होते हैं
मगर फिर वक़्त के हाथों

न जाने क्या गुज़रती है
कि जो भी तीर आता है

उसी जानिब से आता है
जहाँ से इत्र में डूबा हुआ

पैग़ाम आया था
जहाँ से साल भर

महफ़ूज़ रहने का
हसीं मलफ़ूफ़

मेरे नाम आया था