हर रोज़
बदल जाता है कुछ न कुछ
कमरा
हर हफ़्ते अशरे में
नए सलीक़े से सजाया जाता है
सामान
वक़्त के साथ
बदल जाती हैं
कुछ चीज़ें भी
मगर
एक साथ
सब कुछ
बदलने के लिए
बदलना होता है
घर
नज़्म
रिवायत
आदिल रज़ा मंसूरी
नज़्म
आदिल रज़ा मंसूरी
हर रोज़
बदल जाता है कुछ न कुछ
कमरा
हर हफ़्ते अशरे में
नए सलीक़े से सजाया जाता है
सामान
वक़्त के साथ
बदल जाती हैं
कुछ चीज़ें भी
मगर
एक साथ
सब कुछ
बदलने के लिए
बदलना होता है
घर