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रिवायत | शाही शायरी
riwayat

नज़्म

रिवायत

आदिल रज़ा मंसूरी

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हर रोज़
बदल जाता है कुछ न कुछ

कमरा
हर हफ़्ते अशरे में

नए सलीक़े से सजाया जाता है
सामान

वक़्त के साथ
बदल जाती हैं

कुछ चीज़ें भी
मगर

एक साथ
सब कुछ

बदलने के लिए
बदलना होता है

घर