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रेत आईना है | शाही शायरी
ret aaina hai

नज़्म

रेत आईना है

मोहम्मद अनवर ख़ालिद

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क़ैस आसूदा-ए-नक़्श रक़्स-ए-रवाँ
हैरत-ए-चश्म पारीना है

रेत आईना है
और ज़ंगार-ए-आईना हर आलम-ए-चौब-ओ-अबरेशम-ओ-ख़ाक-दाँ

रेत आईना है
जब मनारों में घंटी बजी

वो अचानक मुड़ी कल यहाँ कोई था
वो गजर दम उठी

उस ने अंगड़ाई ली कल यहाँ कोई था
साँप लहराती सड़कों पे चलते हुए वो रुकी

कल यहाँ कोई था
कल यहाँ कौन था

क़ैस आसूदा-ए-नक़्श रक़्स-ए-रवाँ
कौन सूरज को अंगार-ज़ादों के घर ले गया

कल यहाँ बिन मुरादों की बारिश का पहला फुवारा पड़ा
क़ैस आगाह-ए-दाद-ओ-रसद

क़ैस बे-कीन-ओ-कद
रेत आईना है और ज़ंगार-ए-आईना हर आलम-ए-चौब-ओ-अबरेशम-ओ-ख़ाक-दाँ

ख़ौफ़ इक साया-ए-साइबाँ
सारे घर बंद हैं

सारे घर बंद हैं और दरीचों पे बैठी हुई लड़कियाँ मुझ पे हँसने लगीं
नींद इक चाँदनी

नींद पत्थर पे फैली हुई चाँदनी
कौन पत्थर पे चलता रहे और सँभलता रहे

कौन सोता रहे
रेत आईना है

क़ैस आसूदा-ए-नक़्श रक़्स-ए-रवाँ
हैरत-ए-चश्म पारीना है

रेत आईना है