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रौशनी | शाही शायरी
raushni

नज़्म

रौशनी

अाज़म ख़ुर्शीद

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सड़क किनारे बैठ के अक्सर
मैं ये सोचा करता था

घटते बढ़ते
टेढ़े तिरछे

लाखों साए
किस का पीछा करते हैं

उम्र किनारे
अब मैं अपना

सुंदर साया
ढूँड रहा हूँ