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रौशन ख़याली | शाही शायरी
raushan KHayali

नज़्म

रौशन ख़याली

मोहम्मद यूसुफ़ पापा

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दिल ओ दिमाग़ तसव्वुर मिज़ाज हुस्न-ए-बयाँ
कभी के हो चुके रौशन

तजल्लियों के तुफ़ैल
तजल्लियाँ जिन्हें रौशन-ख़यालियाँ कहिए

अज़ीम ज़ेहन जब इस रौशनी में डूब चुका
तो फिर अज़ीम तसव्वुर वजूद में आए

उन्हीं की चश्म-ए-करम के तुफ़ैल में बे-शक
जदीद दौर की रौशन-ख़यालियाँ 'पापा'

नए समाज के कूल्हों पे रक़्स करती हैं