पत्ते सारे के सारे
हरे-भरे थे कभी
धीरे धीरे
एक एक पत्ता
पीला हो कर
दम तोड़ रहा है
जुड़ा था जिन से
अब उन का साथ
छोड़ रहा है
क़ुदरत का क़ानून
यही है
तभी तो फूटेंगी
नई नई कोंपलें
नज़्म
क़ुदरत
ख़दीजा ख़ान
नज़्म
ख़दीजा ख़ान
पत्ते सारे के सारे
हरे-भरे थे कभी
धीरे धीरे
एक एक पत्ता
पीला हो कर
दम तोड़ रहा है
जुड़ा था जिन से
अब उन का साथ
छोड़ रहा है
क़ुदरत का क़ानून
यही है
तभी तो फूटेंगी
नई नई कोंपलें