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क़ुदरत | शाही शायरी
qudrat

नज़्म

क़ुदरत

ख़दीजा ख़ान

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पत्ते सारे के सारे
हरे-भरे थे कभी

धीरे धीरे
एक एक पत्ता

पीला हो कर
दम तोड़ रहा है

जुड़ा था जिन से
अब उन का साथ

छोड़ रहा है
क़ुदरत का क़ानून

यही है
तभी तो फूटेंगी

नई नई कोंपलें