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परदेसी | शाही शायरी
pardesi

नज़्म

परदेसी

हमीदा शाहीन

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इस बार अकेले मत आना
कोई बात अधूरी ले आना

जिसे मिल के पूरा करना हो
कोई लफ़्ज़ जिसे तुम कभी कहीं नहीं बोल सके

कोई गीत जिसे तन्हा नहीं गाया जा सकता
कोई रंग जो मैं ने सारी उम्र नहीं देखा

इक बैग में भर कर ले आना
जो ख़्वाब पराए देस में तुम नहीं देख सके

वो फूल
जो तुम ने किसी को देना चाहा और नहीं दे पाए

वो नींद
जिसे गठड़ी की तरह

पलकों पर लादे फिरते हो
सब अपने साथ उठा लाना

इस बार अकेले मत आना