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पनवाड़ी | शाही शायरी
panwaDi

नज़्म

पनवाड़ी

मजीद अमजद

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बूढ़ा पनवाड़ी उस के बालों में माँग है न्यारी
आँखों में जीवन की बुझती अग्नी की चिंगारी

नाम की इक हट्टी के अंदर बोसीदा अलमारी
आगे पीतल के तख़्ते पर उस की दुनिया सारी

पान कत्था सिगरेट तम्बाकू चूना लौंग सुपारी
उम्र उस बूढ़े पनवाड़ी की पान लगाते गुज़री

चूना घोलते छालियाँ काटते कथ पिघलाते गुज़री
सिगरेट की ख़ाली डिबियों के महल सजाते गुज़री

कितने शराबी मुश्वरियों से नैन मिलाते गुज़री
चंद कसीली पत्तों की गुत्थी सुलझाते गुज़री

कौन इस गुत्थी को सुलझाए दुनिया एक पहेली
दो दिन एक फटी चादर में दुख की आँधी झेली

दो कड़वी साँसें लीं दो चिलमों की राख उँड़ेली
और फिर इस के बाद न पूछो खेल जो होनी खेली

पनवाड़ी की अर्थी उट्ठी बाबा अल्लाह बेली
सुब्ह भजन की तान मनोहर झनन झनन लहराए

एक चिता की राख हवा के झोंकों में खो जाए
शाम को उस का कम-सिन बाला बैठा पान लगाए

झन झन ठन ठन चूने वाली कटोरी बजती जाए
एक पतिंगा दीपक पर जल जाए दूसरा आए