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पंद्रह-अगस्त | शाही शायरी
pandrah-august

नज़्म

पंद्रह-अगस्त

ओवेस अहमद दौराँ

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ऐ लैला-ए-जम्हूरियत
ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ

तुझ से फ़रोग़-ए-शम्अ-ए-शब
महफ़िल में लौ की इब्तिदा

अहल-ए-वफ़ा के देस में
तारीख़-ए-नौ की इब्तिदा

ज़ुल्मत-बद-अमाँ ख़ाक पर
सूरज की ज़ौ की इब्तिदा

हर लब पे तेरी दास्ताँ
ज़ुल्फ़ें तिरी अम्बर-फ़शाँ

ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ
तू अपने दस्त-ए-नाज़ में

इक ख़ुशनुमा परचम लिए
अपने जिलौ में नौ-ब-नौ

ख़ुशियों का इक आलम लिए
मंज़िल के राही के लिए

इक रौ लिए इक रम लिए
हँसती हुई गाती हुई

आवाज़ सी देती हुई
संगीत की हर तान में

दर्स-ए-अमल देती हुई
बन कर उमंगों का निशाँ

आई हमारे दरमियाँ
ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ

अब जगमगाती राह है
और रहरवों के क़ाफ़िले

अब तेज़ हैं सब के क़दम
अब मिट रहे हैं फ़ासले

अब ज़िंदगी है वज्द में
अब जागते हैं वलवले

थक कर कोई सोता नहीं
अब पेड़ के साए तले

नग़्मात-ए-आज़ादी की धुन
कितनी जुनूँ-अंगेज़ है

अब नश्शा-ए-मय है सिवा
अब साज़ की लय तेज़ है

अब रूह को हासिल यहाँ
सद इशरत-ए-परवाज़ है

मसरूर हैं पीर-ओ-जवाँ
ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ

तेरी हद-ए-शादाब में
गंग-ओ-जमन आबाद हैं

कोहसार के हैं सिलसिले
दश्त-ओ-दमन आबाद हैं

अहल-ए-यक़ीं आबाद हैं
अर्बाब-ए-फ़न आबाद हैं

महताब और तारे लिए
नीले गगन आबाद हैं

जन्नत-निशाँ कश्मीर के
रंगीं चमन आबाद हैं

जो हैं हमारी आबरू
हैं जम्न के हम सब पासबाँ

ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ
आ हम तिरे आँचल तले

परचम तिरा ऊँचा करें
तेरी हिफ़ाज़त के लिए

सैफ़ ओ क़लम यकजा करें
तुझ को बनाएँ कामराँ

ऐ दिलबर-ए-हिंदोस्ताँ
मफ़्हूम-ए-आज़ादी है क्या

नूर-ए-सहर की जुस्तुजू
क्या है मता-ए-हुर्रियत

इंसाँ के दिल की आरज़ू
सद-आफ़रीं बर-दौर-ए-मय

आज़ाद हैं जाम-ओ-सुबू
आज़ाद है पायल की धुन

आज़ाद है ज़ुल्फ़ों की बू
आज़ाद है सोज़-ए-जिगर

आज़ाद है दिल का लहू
आज़ाद है ज़ौक़-ए-सफ़र

आज़ाद है जीने की ख़ू
जाए न क्यूँ दिल की लगन

महफ़िल-ब-महफ़िल कू-ब-कू
सद मर्हबा पूरी हुई

वो हसरत-ए-कैफ़-ए-नुमू
जिस के सबब बर्बाद था

सदियों से अपना कारवाँ
ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ

तू ज़ुल्मतों के सैल में
शम-ए-फ़रोज़ाँ बन गई

शब-ताब उफ़ुक़ पर हिन्द के
नूर-ए-दरख़्शाँ बन गई

वादी-ए-निकहत-बेज़ में
जू-ए-ख़िरामाँ बन गई

ख़ुशबू से जिस की चार सू
वो ज़ुल्फ़-ए-जानाँ बन गई

दिल का सुकूँ आराम-ए-जाँ
ऐ दिलबर-ए-हिन्दोस्ताँ