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पैसा | शाही शायरी
paisa

नज़्म

पैसा

नज़ीर अकबराबादी

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नक़्श याँ जिस के मियाँ हाथ लगा पैसे का
उस ने तय्यार हर इक ठाठ किया पैसे का

घर भी पाकीज़ा इमारत से बना पैसे का
खाना आराम से खाने को मिला पैसे का

कपड़ा तन का भी मिला ज़ेब-फ़ज़ा पैसे का
जब हुआ पैसे का ऐ दोस्तो आ कर संजोग

इशरतें पास हुईं दूर हुए मन के रोग
खाए जब माल-पूए दूध दही मोहन-भोग

दिल को आनंद हुए भाग गए रोग और धोग
ऐसी ख़ूबी है जहाँ आना हुआ पैसे का

साथ इक दोस्त के इक दिन जो मैं गुलशन में गया
वाँ के सर्व-ओ-सुमन-ओ-लाला-ओ-गुल को देखा

पूछा उस से कि ये है बाग़ बताओ किस का
उस ने तब गुल की तरह हँस दिया और मुझ से कहा

मेहरबाँ मुझ से ये तुम पूछा हो क्या पैसे का
ये तो क्या और जो हैं इस से बड़े बाग़-ओ-चमन

हैं खिले कियारियों में नर्गिस-ओ-नसरीन-ओ-समन
हौज़ फ़व्वारे हैं बंगलों में भी पर्दे चलवन

जा-ब-जा क़ुमरी-ओ-बुलबुल की सदा शोर-अफ़्गन
वाँ भी देखा तो फ़क़त गुल है खिला पैसे का

वाँ कोई आया लिए एक मुरस्सा पिंजङ़ा
लाल दस्तार-ओ-दुपट्टा भी हरा जूँ-तोता

इस में इक बैठी वो मैना कि हो बुलबुल भी फ़िदा
मैं ने पूछा ये तुम्हारा है रहा वो चुपका

निकली मिन्क़ार से मैना के सदा पैसे का
वाँ से निकला तो मकाँ इक नज़र आया ऐसा

दर-ओ-दीवार से चमके था पड़ा आब-ए-तला
सीम चूने की जगह उस की था ईंटों में लगा

वाह-वा कर के कहा मैं ने ये होगा किस का
अक़्ल ने जब मुझे चुपके से कहा पैसे का

रूठा आशिक़ से जो माशूक़ कोई हट का भरा
और वो मिन्नत से किसी तौर नहीं है मनता

ख़ूबियाँ पैसे की ऐ यारो कहूँ मैं क्या क्या
दिल अगर संग से भी उस का ज़ियादा था कड़ा

मोम-सा हो गया जब नाम सुना पैसे का
जिस घड़ी होती है ऐ दोस्तो पैसे की नुमूद

हर तरह होती है ख़ुश-वक़्ती-ओ-ख़ूबी बहबूद
ख़ुश-दिली ताज़गी और ख़ुर्मी करती है दुरूद

जो ख़ुशी चाहिए होती है वहीं आ मौजूद
देखा यारो तो ये है ऐश-ओ-मज़ा पैसे का

पैसे वाले ने अगर बैठ के लोगों में कहा
जैसा चाहूँ तो मकाँ वैसा ही डालूँ बनवा

हर्फ़-ए-तकरार किसी की जो ज़बाँ पर आया
उस ने बनवा के दिया जल्दी से वैसा ही दिखा

उस का ये काम है ऐ दोस्तो या पैसे का
नाच और राग की भी ख़ूब-सी तय्यारी है

हुस्न है नाज़ है ख़ूबी है तरह-दारी है
रब्त है प्यार है और दोस्ती है यारी है

ग़ौर से देखा तो सब ऐश की बिस्यारी है
रूप जिस वक़्त हुआ जल्वा-नुमा पैसे का

दाम में दाम के यारो जो मिरा दिल है असीर
इस लिए होती है ये मेरी ज़बाँ से तक़रीर

जी में ख़ुश रहता है और दिल भी बहुत ऐश-पज़ीर
जिस क़दर हो सका मैं ने किया तहरीर 'नज़ीर'

वस्फ़ आगे मैं लिखूँ ता-ब-कुजा पैसे का