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पहली नज़्म | शाही शायरी
pahli nazm

नज़्म

पहली नज़्म

सलाहुद्दीन परवेज़

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देवता के गुन गाने वालों उड़ता सूरज क्या है
उड़ता सूरज एक पहेली बड़ी पुरानी

सूना अम्बर जिस को हर दिन दोहराता है
अपरम्पार अँधेरों में वो अन-जानी

मौत की जानिब जादू की नाव पे चढ़ा
दूर बहुत ही दूर को उड़ता जाता है

उड़ता सूरज क्या है भगतो एक रुपहली
शान है चाँदी का शो'ला है

उठती और निखरती खेती पकता फल है
लाल लहू में लहरें लेती गरमाहट है

इस बस्ते संसार में चमकीला दिन है
उड़ता सूरज क्या है कि दो धन है

सोज़ भरी या जलता है अम्बर पे दिया
आसमानों और ज़मीनों के राजा का

दिन और दिन के बीच में आने वाले ठंडे
अँधियारे में दिल को ढारस देने वाला

ध्यान जो फ़व्वारे की सूरत नूर बिखेरे
उड़ता सूरज क्या है आँखो है

बड़े ज्ञानी चित्रकार की जानता है जो
अपने काम के सारे नुक्तों को बातों को

और अम्बर पर साँझ सवेरे खींचता है वो
अपने दिल के बीजों की रंग बिरंगी

जलती और दहकती परतों की तस्वीरें
उड़ता सूरज क्या है आग है

जो संसार के सारे जीने वालों की
रग रग और रेशे रेशे में जलती है