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पहचान | शाही शायरी
pahchan

नज़्म

पहचान

ख़ुर्शीद रिज़वी

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कहीं तुम मिलो तो
मसाइल को उलझा हुआ छोड़ कर हम

अलाएक की ज़ंजीर को तोड़ कर हम
चलें और कुंज-ए-चमन में कहीं

साया-ए-ताक में बैठ कर
भूले-बिसरे ज़मानों की बातें करें

और इक दूसरे के ख़द-ओ-ख़ाल में
अपने खोए हुए नक़्श पहचान कर

महव-ए-हैरत रहें
और नर्गिस की सूरत

वहीं जड़ पकड़ लें