कहीं तुम मिलो तो
मसाइल को उलझा हुआ छोड़ कर हम
अलाएक की ज़ंजीर को तोड़ कर हम
चलें और कुंज-ए-चमन में कहीं
साया-ए-ताक में बैठ कर
भूले-बिसरे ज़मानों की बातें करें
और इक दूसरे के ख़द-ओ-ख़ाल में
अपने खोए हुए नक़्श पहचान कर
महव-ए-हैरत रहें
और नर्गिस की सूरत
वहीं जड़ पकड़ लें
नज़्म
पहचान
ख़ुर्शीद रिज़वी