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पागल-पन | शाही शायरी
pagal-pan

नज़्म

पागल-पन

मुनीर नियाज़ी

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इक पर्दा काली मख़मल का आँखों पर छाने लगता है
इक भँवर हज़ारों शक्लों का दिल को दहलाने लगता है

इक तेज़ हिनाई ख़ुश्बू से हर साँस चमकने लगता है
इक फूल तिलिस्मी रंगों का गलियों में दमकने लगता है

साँपों से भरे इक जंगल की आवाज़ सुनाई देती है
हर ईंट मकानों के छज्जों की ख़ून दिखाई देती है