इक पर्दा काली मख़मल का आँखों पर छाने लगता है
इक भँवर हज़ारों शक्लों का दिल को दहलाने लगता है
इक तेज़ हिनाई ख़ुश्बू से हर साँस चमकने लगता है
इक फूल तिलिस्मी रंगों का गलियों में दमकने लगता है
साँपों से भरे इक जंगल की आवाज़ सुनाई देती है
हर ईंट मकानों के छज्जों की ख़ून दिखाई देती है
नज़्म
पागल-पन
मुनीर नियाज़ी