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पादाश | शाही शायरी
padash

नज़्म

पादाश

शकेब जलाली

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कभी इस सुबुक-रौ नदी के किनारे गए ही नहीं हो
तुम्हें क्या ख़बर है

वहाँ अन-गिनत खुरदुरे पत्थरों को
सजल पानियों ने

मुलाएम रसीले, मधुर गीत गा कर
अमिट चिकनी गोलाइयों को अदा सौंप दी है

वो पत्थर नहीं था
जिसे तुम ने बे-डोल, अन-घड़ समझ कर

पुरानी चटानों से टकरा के तोड़ा
अब उस के सुलगते तराशे

अगर पाँव में चुभ गए हैं तो क्यूँ चीख़ते हो?