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नीलो | शाही शायरी
nilo

नज़्म

नीलो

हबीब जालिब

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तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी
रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है

तुझ को इंकार की जुरअत जो हुई तो क्यूँकर
साया-ए-शाह में इस तरह जिया जाता है

अहल-ए-सर्वत की ये तज्वीज़ है सरकश लड़की
तुझ को दरबार में कोड़ों से नचाया जाए

नाचते नाचते हो जाए जो पायल ख़ामोश
फिर न ता-ज़ीस्त तुझे होश में लाया जाए

लोग इस मंज़र-ए-जांकाह को जब देखेंगे
और बढ़ जाएगा कुछ सतवत-ए-शाही का जलाल

तेरे अंजाम से हर शख़्स को इबरत होगी
सर उठाने का रेआया को न आएगा ख़याल

तब्-ए-शाहाना पे जो लोग गिराँ होते हैं
हाँ उन्हें ज़हर भरा जाम दिया जाता है

तू कि ना-वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-शहंशाही थी
रक़्स ज़ंजीर पहन कर भी किया जाता है