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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

सूफ़ी तबस्सुम

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ज़िंदगी दूर हुई जाती है
और कुछ मेरे क़रीब आ जाओ

जल्वा-ए-हुस्न को कुछ और ज़िया-रेज़ करो
अपने सीने से उभरने वाले

आतिशीं साँस की लौ तेज़ करो
मेरी इस पीरी-ए-दरमांदा की

ख़ुश्क और ख़स्ता सी ख़ाकिस्तर अफ़्सुर्दा में
सोज़-ए-ग़म को शरर-अँगेज़ करो

यूँ ही पल भर ही सही
मेरे क़रीब आ जाओ

ज़िंदगी दूर हुई जाती है