वो सब
भेड़िये हैं
मगर
जानते बूझते
ग़ोल-दर-ग़ोल भेड़ें
ख़ून अपना पिलाने उन्हें
जा रही हैं तो जाएँ
शब ही उन्हें रोकना है
ये मंज़र मुझे देखना है
ये कैसा मज़ा है
नज़्म
नज़्म
मोहम्मद अाज़म
नज़्म
मोहम्मद अाज़म
वो सब
भेड़िये हैं
मगर
जानते बूझते
ग़ोल-दर-ग़ोल भेड़ें
ख़ून अपना पिलाने उन्हें
जा रही हैं तो जाएँ
शब ही उन्हें रोकना है
ये मंज़र मुझे देखना है
ये कैसा मज़ा है