तुम ने देखा था उस के चेहरे को
थे कहीं कर्ब के कोई आसार
तुम उसे मौत कह रहे थे मगर
ख़्वाब-ए-राहत में वो तो सोता था
और पस्मांदगान के सीने में
जिस जहन्नम की आग जलती थी
जुज़ ख़ुदा कौन जान सकता है
सख़्त हैरत है लोग इस पर भी
मातम-ए-मर्ग कर रहे हैं मगर
मातम-ए-ज़िंदगी नहीं करते
नज़्म
नज़्म
गोपाल मित्तल