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नज़्म | शाही शायरी
nazm

नज़्म

नज़्म

गोपाल मित्तल

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यूँ अचानक मुलाक़ात तुझ से हुई
जैसे रहगीर को

बे-तलब
बे-दुआ

राह में एक अनमोल मोती मिले
और हंगाम-ए-रुख़्सत ये एहसास है

जैसे मर्द-ए-जफ़ा-कश का अंदोख़्ता
हासिल-ए-मेहनत-ए-ज़िंदगी

राहज़न छीन ले
जैसे ज़ाहिद को पीरी में एहसास हो

उम्र भर की रियाज़त अकारत गई