यूँ अचानक मुलाक़ात तुझ से हुई
जैसे रहगीर को
बे-तलब
बे-दुआ
राह में एक अनमोल मोती मिले
और हंगाम-ए-रुख़्सत ये एहसास है
जैसे मर्द-ए-जफ़ा-कश का अंदोख़्ता
हासिल-ए-मेहनत-ए-ज़िंदगी
राहज़न छीन ले
जैसे ज़ाहिद को पीरी में एहसास हो
उम्र भर की रियाज़त अकारत गई
नज़्म
नज़्म
गोपाल मित्तल