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नौहा | शाही शायरी
nauha

नज़्म

नौहा

रिफ़अत सरोश

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नौहा उन का नहीं गुज़र गए जो
ज़िंदगी की उदास राहों से

फेंक कर बोझ अपने काँधों का
नौहा उन का जो अब भी जीते हैं

दर्द को ज़िंदगी बनाए हुए
मरने वालों का बोझ उठाए हुए