नौहा उन का नहीं गुज़र गए जो
ज़िंदगी की उदास राहों से
फेंक कर बोझ अपने काँधों का
नौहा उन का जो अब भी जीते हैं
दर्द को ज़िंदगी बनाए हुए
मरने वालों का बोझ उठाए हुए

नज़्म
नौहा
रिफ़अत सरोश
नज़्म
रिफ़अत सरोश
नौहा उन का नहीं गुज़र गए जो
ज़िंदगी की उदास राहों से
फेंक कर बोझ अपने काँधों का
नौहा उन का जो अब भी जीते हैं
दर्द को ज़िंदगी बनाए हुए
मरने वालों का बोझ उठाए हुए