सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे
ख़रोशाँ समुंदर की मौजें तुझे ढूँढती हैं
ख़रोशाँ हवा की सदाओं में तेरी सदा है
मिरा दिल तुझे ढूँढता है
सियह-रात अश्कों की शबनम में सोई हुई है
हर इक पल हर इक लम्हा माज़ी का
ज़िंदा है मौजूद में जागता है
मगर तेरा पैकर
तह-ए-ख़ाक अंधेरों के मामन में सोया हुआ है
मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है
तुझे ढूँढता है
मैं आसूदा-ए-रेग-ए-ख़ामोश
उस रात की जलती आँखों को देखूँ
सियह-रात में टिमटिमाते हुए
उन सितारों से पूछूँ
ख़रोशाँ समुंदर में डूबा हुआ चाँद
किसी अजनबी सर ज़मीं पर तबस्सुम-कुनाँ है
नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा की मंज़िल कहाँ है?
यम-ए-ज़िंदगी सैल-दर-सैल बहता हुआ
एक लम्हे को रुक कर पलट कर न देखे
सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे
फ़क़त एक शब बे-सदा जागती है
शब-ए-बे-सदा पूछती है
बिफरती हुई मौज-ए-दरिया किधर से चली थी?
किधर को चली है?
मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है
किसे ढूँढता है

नज़्म
नौहा
महमूद अयाज़