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नौहा | शाही शायरी
nauha

नज़्म

नौहा

महमूद अयाज़

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सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे
ख़रोशाँ समुंदर की मौजें तुझे ढूँढती हैं

ख़रोशाँ हवा की सदाओं में तेरी सदा है
मिरा दिल तुझे ढूँढता है

सियह-रात अश्कों की शबनम में सोई हुई है
हर इक पल हर इक लम्हा माज़ी का

ज़िंदा है मौजूद में जागता है
मगर तेरा पैकर

तह-ए-ख़ाक अंधेरों के मामन में सोया हुआ है
मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है

तुझे ढूँढता है
मैं आसूदा-ए-रेग-ए-ख़ामोश

उस रात की जलती आँखों को देखूँ
सियह-रात में टिमटिमाते हुए

उन सितारों से पूछूँ
ख़रोशाँ समुंदर में डूबा हुआ चाँद

किसी अजनबी सर ज़मीं पर तबस्सुम-कुनाँ है
नुक़ूश-ए-कफ़-ए-पा की मंज़िल कहाँ है?

यम-ए-ज़िंदगी सैल-दर-सैल बहता हुआ
एक लम्हे को रुक कर पलट कर न देखे

सियह-रात में टिमटिमाते सितारों के नीचे
फ़क़त एक शब बे-सदा जागती है

शब-ए-बे-सदा पूछती है
बिफरती हुई मौज-ए-दरिया किधर से चली थी?

किधर को चली है?
मिरा दिल कि मातम-गर-ए-रफ़्तगाँ है

किसे ढूँढता है