EN اردو
नई सुब्ह | शाही शायरी
nai subh

नज़्म

नई सुब्ह

साहिर होशियारपुरी

;

ये चमन-ज़ार ये ख़ुश-रंग बहारों का जहाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

चम्पई धूप में हर ज़र्रा है सूरज की किरन
चाँदनी रात में हर फूल है रौशन रौशन

नूर ही नूर ज़मीं से है फ़लक तक रक़्साँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

वादी-ए-गंग-ओ-जमन जन्नत-ए-नज़ारा है
सर-ज़मीं अपनी ज़र-ओ-सीम का गहवारा है

अपने दरियाओं की हर मौज में बिजली है रवाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

वलवले दिल में तो आँखों में उमंगें रौशन
हैं सभी चेहरे यहाँ हुस्न-ए-अमल के दर्पन

अज़्मत मेहनत-ओ-ईसार जबीनों से अयाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

आश्ती अम्न मोहब्बत के परस्तार सभी
जज़्बा-ए-मेहर-ओ-मुरव्वत से हैं सरशार सभी

साझे त्यौहार हैं होली हो कि ईद-ए-क़ुर्बां
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ

तर्जुमान-ए-दिल-ए-जम्हूर अदीब-ओ-फ़नकार
इन के अफ़्कार तवाना हैं तख़य्युल बेदार

निखरा निखरा नई सज-धज का है अंदाज़-ए-बयाँ
ज़िंदगी कितनी दिल-आवेज़-ओ-दिल-आरा है यहाँ