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नए साल की सुब्ह | शाही शायरी
nae sal ki subh

नज़्म

नए साल की सुब्ह

सोहन राही

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रूह-ए-इंसाँ की जवाँ तिश्ना-लबी की ख़ातिर
ज़ंग-आलूद तमन्नाओं की ज़ंजीर लिए

फिर सहर रात के ज़िंदाँ से निकल आई है
सुब्ह लाई है उजालों का छलकता हुआ जाम

रात की आँखों से टपका है सितारों का लहू
तीरा-ओ-तार फ़ज़ा डूब गई है ख़ुद में

दूर सूरज की सुलगती हुई आहों से परे
मेरी हर फ़िक्र की हर सोच की राहों से परे

दिल की आँखों से परे मेरी निगाहों से परे
फिर वही फ़िक्र-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-तलब फ़िक्र-ए-ज़वाल

फिर वही तेज़ मसाइल वही खूँ-ख़्वार सवाल
फिर सियह-पोश तसव्वुर का सियह-पोश कमाल

फिर उठाए हैं तमन्नाओं ने ख़्वाबों के कफ़न
फिर वही पेट के मानूस तक़ाज़ों की चुभन

फिर लहू रोती है इफ़्लास की मदक़ूक़ दुल्हन
रूह-ए-इंसाँ की जवाँ तिश्ना-लबी की ख़ातिर

ज़ंग-आलूद तमन्नाओं की ज़ंजीर लिए
फिर सहर रात के ज़िंदाँ से निकल आई है