अहमक़ क़ुमक़ुमो! बेवक़ूफ़ मशीनो!
तुम सब शायद सोचते होगे
अपनी तेज़ चका-चौंद रौशनी से
अपनी घड़-घड़ाहट से धमक से
मेरे अंदर किसी को
बेहाल करोगे ख़ौफ़-ज़दा कर दोगे!
उँह बे-कार न इतराओ
मेरे अंदर का कोई
कब का सो चुका
अब तो सोते में झुरझुरी भी नहीं लेता
अब तो केवल मैं हूँ
तुम सा तुम्हारे जैसा ''मैं''!
नज़्म
ना-काम कोशिश
अब्दुल अहद साज़