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न जाने क्या हो | शाही शायरी
na jaane kya ho

नज़्म

न जाने क्या हो

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बे-वजह उदासी का सबब पूछेंगे

ये भी पोछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़

इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ़
चूड़ियों पर भी कई तंज़ किए जाएँगे

काँपते हाथों पे फ़िक़रे भी कसे जाएँगे
लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ता'ना देंगे

बातों बातों में मिरा ज़िक्र भी ले आएँगे
उन की बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना

वर्ना चेहरे के तअस्सुर से समझ जाएँगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उन से

मेरे बारे में कोई बात न करना उन से
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी