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मुराजिअत | शाही शायरी
murajiat

नज़्म

मुराजिअत

मलिक एहसान

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शहरों के शफ़्फ़ाफ़ बदन और तहज़ीबों के सीनों पर
नीली बरा में लिपटी मुतमद्दिन छातियों में

जितनी कशिश है उतना दूध नहीं है
चाँद रंग ढलवानों पर

इंसानों के आँसुओं का एक भी क़तरा
ठहर नहीं सकता है आ कर

तो फिर हम सब क्यूँ न चल कर
सहरा में ही रहा करें अब