मैं अपनी उम्र के सब आख़िरी लम्हे
हिसार-ए-फ़िक्र से बाहर
निकल कर जीना चाहूँ तो
मिरे ख़ालिक़
मिरे एहसास पर बिजली गिरा देना
मुझे पागल बना देना

नज़्म
मुझे पागल बना देना
शारिक़ अदील
नज़्म
शारिक़ अदील
मैं अपनी उम्र के सब आख़िरी लम्हे
हिसार-ए-फ़िक्र से बाहर
निकल कर जीना चाहूँ तो
मिरे ख़ालिक़
मिरे एहसास पर बिजली गिरा देना
मुझे पागल बना देना