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मुझे पागल बना देना | शाही शायरी
mujhe pagal bana dena

नज़्म

मुझे पागल बना देना

शारिक़ अदील

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मैं अपनी उम्र के सब आख़िरी लम्हे
हिसार-ए-फ़िक्र से बाहर

निकल कर जीना चाहूँ तो
मिरे ख़ालिक़

मिरे एहसास पर बिजली गिरा देना
मुझे पागल बना देना