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मुझे कुछ याद आता है | शाही शायरी
mujhe kuchh yaad aata hai

नज़्म

मुझे कुछ याद आता है

नोमान शौक़

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तुम्हारे शहर को छोड़े हुए
इक्कीस दिन

इक्कीस रातें
और कुछ परकार लम्हे हो चुके हैं

मिरे आमाल-नामे पर किसी बे-जान जज़्बे का
और अधूरा जिस्म जलता है

वहाँ जब दिन निकलता है
वहाँ जब शाम होती है

किसी के वाइलन जैसे बदन पर
नर्म धूपों के निखरते साए

अपनी सुरमई आँखों से
दुख के राग गाते हैं

वहाँ जब रात होती है
मिरे अंधे मशामों से

कोई ख़ुश्बू निकल कर फैल जाती है
मोहब्बत के किसी शफ़्फ़ाफ़ लम्हे का मुनव्वर जिस्म

मिरी बे-कराँ तन्हाइयों में
जगमगाता है

मुझे कुछ याद आता है